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राज्य वन सेवा के प्रशिक्षु अफसरों ने समन्वित खेती और प्राकृतिक संसाधनों को समझा

केंद्रीय अकादमी राज्य वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों ने सिमलास और कोल गांव का भ्रमण किया

डोईवाला। केंद्रीय अकादमी राज्य वन सेवा, देहरादून में राज्य वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के दल ने देहरादून के सिमलास ग्रांट और टिहरी गढ़वाल के कोल गांव का भ्रमण किया। सिमलास में प्रशिक्षु अधिकारियों ने मां श्रीमती कौशल्या देवी फाउंडेशन के कार्यों और समन्वित खेती के मॉडल को समझा। वहीं, कोल गांव में प्राकृतिक जल धारा से कृषि एवं पेयजल योजना तथा धान के संरक्षित बीज के बारे में जानकारी ली।

केंद्रीय अकादमी राज्य वन सेवा देहरादून में स्थित राष्ट्रीय स्तर की अकादमी है, जो देशभर के राज्य वन सेवा के अधिकारियों और  अन्य हितधारकों और अन्य सेवाओं के कर्मियों के लिए प्रशिक्षण और कार्यशालाओं का आयोजन करती है। बुधवार सुबह अकादमी में राज्य वन सेवा पाठ्यक्रम (2022-24) के प्रशिक्षु अधिकारी स्पेशल मॉड्युल ऑन एनजीओ के तहत फील्ड विजिट पर सिमलास ग्रांट पहुंचे थे।

प्रशिक्षु अधिकारियों के 69 सदस्यीय दल ने सिमलास में मां श्रीमती कौशल्या देवा फाउंडेशन के प्रोत्साहन और प्रेरणा से संचालित एकीकृत खेती, जिसमें पॉल्ट्री फार्म, मछली पालन, बतख पालन एवं किचन गार्डनिंग के मॉडल के बारे में जाना।

मां कौशल्या देवी फाउंडेशन के प्रतिनिधि उमेद बोरा ने राज्य वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के कृषि से जुड़े सवालों के जवाब दिए।

यह दल अकादमी के आफिसर पीएन सुयाल के नेतृत्व में गांवों के भ्रमण पर था। फाउंडेशन के प्रतिनिधि प्रगतिशील किसान उमेद बोरा ने प्रशिक्षु अधिकारियों को फाउंडेशन के कार्यों, जिसमें खेती किसानी को प्रोत्साहित करने के साथ ही, नेत्रदान के लिए संकल्प दिलाना तथा रक्तदान भी शामिल है, के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि फाउंडेशन क्षेत्र में तीन हजार से अधिक लोगों के बीच खेती, पशुपालन, जैविक खाद, पर्यावरण सुरक्षा के लिए जागरूकता के कार्य कर रहा है।

उन्होंने बासमती के लिए मशहूर रही दूधली घाटी के सुसवा नदी के प्रदूषित पानी से हुए नुकसान की भी जानकारी दी। साथ ही, भविष्य की खेती पर भी बात की।

फाउंडेशन के प्रतिनिधियों ने प्रशिक्षु अधिकारियों के फाउंडेशन के कार्यों और समन्वित खेती से जुड़े सवालों के जवाब दिए। इस मौके पर, एम्पावर सोसाइटी के उपाध्यक्ष -एक्जीक्यूशन निखिल झा, फाउंडेशन से जुड़े सेवानिवृत्त कैप्टन (सेवानिवृत्त) चतर सिंह बोरा, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य जितेंद्र कुमार ने खेतीबाड़ी, गांवों की सीमा से सटे वन क्षेत्रों की सुरक्षा तथा नदियों के संरक्षण में ग्रामीणों के योगदान तथा आर्गेनिक खेती के बारे में चर्चा की।

समन्वित खेती के संचालक सुरेंद्र सिंह बोरा ने प्रशिक्षु अधिकारियों के पोल्ट्री फार्म, मत्स्य पालन, बतख पालन तथा किचन गार्डनिंग, उद्यान के बीच परस्पर संबंध के बारे में बताया। उनको बताया कि कम भूमि वाले किसानों के लिए समन्वित खेती किस तरह स्वरोजगार का सशक्त माध्यम हो सकती है।

राज्य वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों ने देहरादून के सिमलास ग्रांट में समन्वित खेती के बारे में विस्तार से जानकारी ली। फोटो- सार्थक पांडेय

इस अवसर पर फाउंडेशन की अध्यक्ष सुषमा बोरा, नारायण सिंह, खड़क सिंह, कुंदन सिंह, सुरेंद्र सिंह, भगवान सिंह, जितेंद्र कुमार, गोविंद सिंह, पृथ्वी राज कार्की, पूरन सिंह, राम सिंह, तूली देवी, किरन बोरा, गीता कार्की, जमुना कार्की आदि उपस्थित रहे।

इसके बाद, प्रशिक्षु अधिकारियों ने देहरादून जिले की सीमा पर टिहरी गढ़वाल जिले की कोडारना ग्राम पंचायत के कोल गांव का भ्रमण किया। यहां 63 वर्षीय ग्रामीण श्याम किशोर बिज्लवाण, मनोज रावत ने उनको गांव की जलधारा को दिखाया, जिसे सैकड़ों वर्ष पहले से अविरल बहने की जानकारी दी। उन्होंने बताया, यह जलधारा कोडारना गांव से भी आगे से आ रही है, जिससे गांव में खेती एवं पेयजल की व्यवस्था हो रही है।

राज्य वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों ने टिहरी गढ़वाल के कोल गांव में ग्रामीणों ने सिंचाई एवं पेयजल व्यवस्था के बारे में जानकारी ली। फोटो- सार्थक पांडेय

ग्रामीण बिजल्वाण ने लाल डंडी धान की लगभग विलुप्त हो चुकी प्रजाति के संरक्षण की जानकारी देते हुए बताया, हमारे गांव में यह धान लगभग सौ साल से भी संरक्षित है। धान के बीजों को रोटेशन के हिसाब से खेतों में बोते हैं, इससे उनकी पैदावार पर असर नहीं पड़ता और न ही गुणवत्ता पर।

अकादमी के आफिसर पीएन सुयाल ने प्रशिक्षु अधिकारियों को विस्तार से जानकारी देने के लिए फाउंडेशन का आभार व्यक्त किया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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