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तक धिना धिनः बच्चे लिखेंगे कहानियों की किताब

तक धिनाधिन का इस रविवार का पड़ाव था  मानव भारती अंघेला हिल्स ग्रीन स्कूल। साढ़े तीन हजार फीट ऊंचाई पर स्थित ग्रीन स्कूल में उत्तराखंड और बिहार के बच्चों व शिक्षकों का दल पहुंचा है। जब अंघेला हिल्स ग्रीन स्कूल जाने को कहा गया तो मन में यही ख्याल आया कि एक बार फिर प्रकृति की गोद में कुछ समय बिताने का मौका मिलेगा और तन मन रीचार्ज करके ही लौटूंगा। हुआ भी यही क्योंकि नेचर आपको सिखाती है, नेचर की कृतियां आपको कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित करती हैं, जो अभिनव हो। यहां तो दो-दो मौके थे, जिनसे मैं कुछ सीखकर लौटा, एक प्रकृति और दूसरे बच्चे। सुबह नौ बजे मानवभारती स्कूल देहरादून से सिविल सर्विस परीक्षा विशेषज्ञ अभिषेक वर्मा के साथ अंघेला की ओर रवाना हुए।

घंघोड़ा का यह इलाका, शहर के शोर से कहीं दूर है। यहां शोर और ध्वनि का अंतर साफ महसूस किया जा सकता है। आप समझ गए न क्या कह रहा हूं। शहर का शोर बर्दाश्त से बाहर हो जाता है, लेकिन जब हम किसी म्युजिकल इंस्ट्रूमेंट की धुन को सुनते हैं तो आनंद मिलता है। ठीक यहां भी ऐसा ही है, शांत जंगल में पक्षियों की चहचहाट आपको अच्छी लगती है। उनका संवाद आपकी समझ में भले ही न आए, लेकिन सुकून तो देता है।

अगर आपको ऐसा कोई अनुभव नहीं है तो हमारे साथ चलिए अंघेला हिल्स ग्रीन स्कूल। यहां प्रकृति का अनुपम सौंदर्य देखने का ही नहीं बल्कि इससे कुछ सीखने का मौका भी है। जयदड़ गांव से शुरू होता है घने जंगल का रास्ता। जंगली रास्ते के दोनों ओर दीमकों के घर, जिनको हम बांबियां कहते हैं, ऐसी लग रही थी कि दीमकों ने अपने घर बनाने की प्रेरणा किसी किले को देखकर ली होगी। भीतर का तो मुझे पता नहीं, लेकिन बाहर का आर्किटेक्चर कमाल का है। छोटी-छोटी दीमकों ने ऐसी इंजीनियरिंग दिखाई कि अपने लिए किले बना दिए। क्या यहां से यह सीखने के लिए काफी नहीं है कि छोटा या बड़ा कुछ नहीं होता, हौसला होना चाहिए।

खैर, कोई बात नहीं, यहां हम बात कर रहे थे अंघेला हिल्स ग्रीन स्कूल की। स्कूल परिसर में एंट्री करते ही दिखाई दिया वट वृक्ष, जिससे संवाद का जिक्र मैं पहले कर चुका हूं। वट वृक्ष डायवर्सिटी का पैरोकार है, तभी तो अपने साथ तमाम तरह के कीट पतंगों और पक्षियों को बसेरा बनाने की परमिशन दी है।

शायद वो चाहता है कि सभी साथ साथ रहे, सुख दुख जो भी कुछ हैं, साथ मिलकर बांटे। यह बड़ा मैसेज है, जो मेरी समझ में बहुत मुश्किल से एंट्री हुआ। हमें पेड़ों की कतारें मिलीं, पक्षियों के घोंसले दिखे। रंग बिरंगी तितलियां दिखीं। कठफोड़ुवा जो शहर क्या, गांव में भी नहीं दिखता, यहां बेफिक्र होकर पेड़ पर टुक टुक कर रहा था। यहां मिले बहुत सारे पक्षियों का दीदार मुझे पहले नहीं हुआ था।

अरे, अंघेला हिल्स ग्रीन स्कूल परिसर में नेचर की क्लास में खो गया। तक धिनाधिन की बात कब बताऊंगा। देहरादून और पटना मानव भारती स्कूल के क्लास छह से आठ तक के बच्चे और शिक्षक हॉल में प्रो. राजेश्वर सर और डॉ. अनंतमणि त्रिवेदी को सुन रहे थे। राजेश्वर सर सोशल साइकोलॉजी के गहरे जानकार हैं। उनका मन बच्चों के साथ रमता है और बच्चों को खेल खेल में कुछ न कुछ अभिनव सिखाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

इन दिनों उत्तराखंड भ्रमण पर हैं। बच्चों ही नहीं शिक्षकों और अभिभावकों को भी उनका मार्गदर्शन मिलता रहता है। बच्चों के साथ त्याग और धैर्य पर चर्चा की जा रही थी। सभी अपने अपने अनुभव बता रहे थे, जिनका जिक्र आपके साथ जल्द ही करूंगा। फिलहाल तक धिनाधिन पर बात करते हैं।

तक धिना धिन पेड़ों की छांव में, हरियाली के बीच करने का निर्णय लिया गया। प्रो. राजेश्वर सर के साथ सभी बच्चे और शिक्षक पेड़ों की छांव में बैठे। हमने पटना से आई क्लास 8 की स्टूडेंट  श्रीमोयी से पूछा, आप कहां से आई हैं। उसने कहा, मैं पटना से आई हूं। आपके साथ और कौन-कौन यहां आया है। उसने कहा, टीचर और स्टूडेंट्स। कोई और भी आपके साथ आया है। मैंने तो देखा था कि आपके साथ पटना से कोई पेड़ भी आया है। जब आप देहरादून मानवभारती स्कूल आई थीं तो गेट के बाहर बाउंड्री से पेड़ झांक रहा था।

इस पर क्लास 5 के हम्माद हसन ने कहा, पेड़ नहीं आया हमारे साथ। वो कहां चलता है। हमने पूछा, पेड़ क्यों नहीं चलता। ट्रेन या बस से बाहर देखते हो, तो क्या पेड़ दौड़ते हुए नहीं दिखते। देहरादून का शौर्य बोेल उठा, पेड़ तो अपनी जगह पर खड़ा रहता है। हम्माद और क्लास 6 की यशस्वी शुक्ला, श्रेया कुमारी, भव्या सिंह, क्लास 7 की अमरीन बोले, पेड़ कहां घूमता है। वो तो ट्रेन चलती है और पेड़ पीछे ही रह जाता है, वो चलता कहां है। हमने भी मौका देखा और पूछ लिया वही पुराना सवाल,जो सभी से पूछते हैं। तो आप सभी बताओ, पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता। साइंस तो कहता है कि पेड़ लिविंग थिंग है। खाना बनाता भी है और खाता व खिलाता भी है। वह घूमने क्यों नहीं जाता।

पटना स्कूल के क्लास फाइव के संपूर्णानंद ने कहा, उसके पैर नहीं होते। जड़ों में मिट्टी लगी होती है। मिट्टी हट जाएगी, अगर वो घूमने गया। देहरादून के क्लास 6 के अर्श, गौरी, प्रियांशु, क्लास 7 के अंकुर, अवंतिका सभी ने जवाब देेेने के लिए हाथ खड़े किए। किसी ने कहा, पेड़ घूमने जाएगा तो इंसान कहां चलेंगे। वो तो सड़क तोड़ देगा। किसी ने कहा, हमें हवा कौन देगा। हमें फल कौन देगा। हमें छाया कौन देगा। सारे पेड़ हमें छोड़कर चले जाएंगे। तभी एक जवाब मिला, हम पेड़़ों के बिना जीवित नहीं रह पाएंगे। वो तो हमें आक्सीजन देते हैं सर।

शिक्षिका अन्नु शर्मा ने कहा, इंसानों के बाद पेड़ ही वो लिविंग थिंग हैं, जो अपना खाना स्वयं बनाते हैं और सबको खिलाते हैं। बच्चों के जवाब से खुश होकर राजेश्वर सर, पटना स्कूल के निदेशक प्रदीप कुमार मिश्रा जी ने तालियां बजाकर उनका उत्साह बढ़ाया। हमने बच्चों को पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, कहानी सुनाई। राजेश्वर सर ने बच्चों से, पेड़ घूमने जाता तो क्या होता, विषय पर विचार लिखने को कहा।

अब वक्त था बच्चों से कुछ सुनने का। हम्माद हसन ने स्टोरी सुनाई, जिसका शीर्षक बताया, फैमिली, जिससे उन्होंने संदेश भी दिया कि कुछ भी करने से पहले एक बार सोच लो। यशस्वी ने ब्यूटीफुल फिश कहानी सुनाई। समुद्र में एक कलरफुल ब्यूटीफुल फिश थी, जिसे देखकर उसकी साथी चिढ़ती थीं। वह उनसे बात करना चाहती थी, लेकिन वो उसको इग्नोर करती थीं। एक दिन सोने से पहले उसने भगवान से प्रेयर की कि भगवान, और फिश को भी कलरफुल कर दो। उसने सुबह उठकर देखा कि उसके साथ वाली सभी फिश भी ब्यूटीफुल हो गईं। अब वो सब खुशी खुशी साथ रहने लगीं। कहानी का संदेश है, सभी एक दूसरे के लिए कुछ न कुछ अच्छा सोचें और खुश रहें।

इसी कहानी को आगे बढ़ाते हुए सभी से एक सवाल पूछा गया कि अगर दुनिया में सभी चीजें एक ही रंग की होतीं तो क्या होता। यहां तक कि सभी का व्यवहार, सभी का खानपान, वेशभूषा, कलचर… यानी डायवर्सिटी नहीं होती। बच्चों के जवाब बड़े शानदार रहे। देहरादून के क्लास 7 के राधेश ने कहा, कुछ भी अच्छा नहीं लगता। क्लास 7 के वेदांश ने कहा, कोई भी एक दूसरे को पहचान ही नहीं पाता।

क्लास 8 की साक्षी ने कहा, डायवर्सिटी के बिना जीवन का कोई मतलब नहीं रहता। देहरादून की टीचर पूनम ढौंडियाल ने कहा, डायवर्सिटी तो पहचान होती है। पटना स्कूल की प्रिंसिपल सुजाता बधानी ने कहा, एक ही जैसा व्यवहार होता तो हो सकता है कि सभी को गुस्सा आता या सभी खुश रहते या फिर सभी उम्मीदों के साथ जीते या फिर निराशा छाई रहती। ऐसे में क्रियेटिविटी भी नहीं होती। कलर तो क्रियेटिविटी का खास हिस्सा होते हैं।

राजेश्वर सर ने इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए यशस्वी को अपनी प्रिंसिपल मैम के पास वाली चेयर पर बैठाकर कहा, देखिए किसी भी विषय पर बच्चों और टीचर का नजरिया कितना अलग हो सकता है। बच्चे अपने टीचर से ज्यादा अच्छा सोच सकते हैं, इस बात से मना नहीं किया जा सकता। यह सब वह स्कूल में टीचर और घर में माता पिता से सीखते हैं।

यशस्वी की फिश वाली स्टोरी बताती है कि सभी एक दूसरे की खुशी का ध्यान रखें और एक दूसरे लिए सोचें। प्रिंसिपल ने यशस्वी को गले से लगा लिया और उससे कहा, बेटा आप बहुत तरक्की करो।

इसके बाद में हमने सतरंगी का अभिमान कहानी सुनाई, जो सात रंगों वाली मछली की कहानी है। सतरंगी अपनी साथियों को पसंद नहीं करती। बाद में सतरंगी को अपनी गलती का अहसास होता है, क्योंकि वह जान गई थी कि डायवर्सिटी के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। हमने पटना की शिक्षिका अनीशा कुमारी से कहा, मान लो आप नदी हैं। आप अपने बारे में बच्चों को क्या बतातीं। शिक्षिका ने कहा, मैं कहती कि आप नदी की तरह सभी का ख्याल रखो। आप नदी की तरह आगे बढ़ते रहो। देहरादून की शिक्षिका अनुराधा मेहरा ने कहा, नदी हमें बताती है कि बाधाओं से मत घबराओ। अपनी राह स्वयं तैयार करो, सफलता आपका इंतजार कर रही है। पटना की क्लास 7 की स्टूडेंट रागिनी प्रियम ने कहा, नदी में गंदगी नहीं फेंकनी चाहिए। नदियां साफ रखो।

इस दौरान निदेशक प्रदीप कुमार जी ने कहा, तक धिनाधिन के साथ मिलकर देहरादून और पटना स्कूल के बच्चे कहानियां और कविताएं लिखेंगे। बच्चों की एक वर्ष में एक किताब प्रकाशित की जाएगी।

तक धिनाधिन का क्रम काफी देर तक चला। पटना के रिद्धी ने कविता बादल, अनिका ने नेचर, संपूर्णानंद ने अगर पेड़ चलते तो, आयुष कुमार ने कहानी विंडो एंड ट्री सुनाई। देहरादून के शिक्षक अभिषेक वर्मा ने गीत- दुनिया ऐसी हुआ करती थी… सुनाई, जिसके बोल हैं-

थोड़ा सा नदी का पानी, मुट्ठी भर रेत रख लो

धान, गेहूं, सरसो वाले हरे पीले खेत रख लो

पूछेगा कोई तो….. उसको बताएंगे

इन आने वाली पीढ़ियों को चलके दिखाएंगे कि दुनिया ऐसी हुआ करती थी।

अभिषेक वर्मा ने बच्चों को परीक्षा की तैयारी कैसे की जाए, के बारे में बताया। साथ ही उनकी कई जिज्ञासाओं के जवाब दिए।

शिक्षक डॉ. अनंतमणि त्रिवेदी ने महान कवि जयशंकर प्रसाद की रचना-

हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!’   सुनाई।

दिल्ली से आए युवा उत्कर्ष ने सन राइज, सन सेट पोयम के जरिए आशा का संचार किया। बच्चों को इंगलिश की जंगल जर्नी, कौन बड़ाः अंधेरा या उजाला कहानियां सुनाई गईं। तक धिनाधिन में मानवभारती पटना के सलाहकार जगन्नाथ प्रसाद, फाउंडेशन स्कूल के प्रिंसिपल विकास झा, देहरादून के प्रिंसिपल राजीव सिंघल ने बच्चों का हौसला बढ़ाया। थैंक्यू बच्चों, आपकी वजह से ही तो तक धिनाधिन है। अगली बार फिर मिलेंगे, तब तक के लिए खुशियों और शुभकामनाओं का तक धिनाधिन।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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