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तकधिनाधिनः बच्चों ने कही अपने मन की बात

मैं शीरानी हूं और अपने देश के लिए कुछ करना चाहती हूं। मैं उनमें से नहीं हूं, जो जीवन में कोई भी मुकाम तो अपने देश के योगदान से हासिल करते हैं, लेकिन जब देश के लिए कुछ करने का समय आता है तो वो जॉब करने यूनाइटेड स्टेट चले जाते हैं। आप जो कुछ होते हैं, अपने देश की वजह से होते हैं। मेरा मानना है कि जब हमें हमारा देश सफल बनाता है तो उसके लिए कुछ करना भी तो हमारी जिम्मेदारी है। हमें अपने भारत के लिए कुछ करना चाहिए।

तक धिनाधिन ने यह रविवार सहस्रधारा रेजीडेंसी के बच्चों को सुनने और कुछ अपनी सुनाने के लिए तय किया था। हमने बच्चों से कहा कि जो भी कुछ विचार, सुझाव या कल्पनाएं उनके पास हैं, हमें एक पेपर में लिख कर दें। चाहें तो वो अपने बारे में लिख सकते हैं, अपने दोस्तों, स्कूल, टीचर, शहर, अपनी पसंद की किसी वस्तु, किताब… जो मन करे, वो लिखें।

नर्सरी, केजी, क्लास वन के कुछ बच्चे बोले, वो तो ड्राइंग बनाएंगे, हमने कहा देर किस बात की है ड्राइंग ही बनाओ। कुछ बच्चों ने पूछा, क्या घर जाकर कलर ले आएं। हमने कहा, कलर अगली बार, इस बार तो आप पेन से चित्र ही बना दो। वैसे हमें बच्चों के लिए कलर और पेंसिल भी ले जानी चाहिए थीं, अगले कार्यक्रम में यह कमी नहीं रहेगी। हमने महसूस किया कि छोटे बच्चे पेपर पर कलर करना ज्यादा पसंद करते हैं।

हां, तो हम बात कर रहे थे शीरानी की। शीरानी क्लास 10 की स्टूडेंट हैं और उन्होंने अपने बारे में अंग्रेजी में कुछ लिखा है, जिसका अनुवाद और भाव कुछ इस तरह है- हेलो, मैं शीरानी क्लास 10 की स्टूडेंट हूं। मुझे बैडमिंटन और नृत्य पसंद हैं। मुझे स्टडी करना अच्छा लगता है। मुझे पीसीबी (फिजिक्स, कैमिस्ट्री, बायोलॉजी) की पढ़ाई करनी है, क्योंकि मैं एक सफल कार्डियोलॉजिस्ट बनना चाहती हूं।

कार्डियोलॉजिस्ट बनकर मैं उन लोगों के लिए हॉस्पिटल खोलना चाहती हूं, जो गरीबी की वजह से अस्पताल की फीस नहीं दे पाते। मैं गरीब परिवारों के मरीजों के लिए कुछ करना चाहती हूं। शिवानी की सोच और संवेदनशीलता को तकधिनाधिन सैल्यूट करता है। हम चाहते हैं कि शिवानी कार्डियोलॉजिस्ट बनकर देश की सेवा करें।

त्रिशा भी क्लास 10 की स्टूडेंट हैं। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था पर अंग्रेजी में लिखा है। उनका कहना है कि भारत में शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता है। यहां शिक्षा पाने का मतलब नौकरी पाने से है। यहां तक कि बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि तुम्हें पढ़ाई में कड़ी मेहनत करनी है और सफल व्यक्ति बनना है।

त्रिशा कहती हैं कि गरीब परिवारों के संसाधनहीन बच्चे पढ़ाई का अवसर हासिल नहीं कर पाते हैं। उनमें से अधिकतर बाल श्रमिक बनने को मजबूर हो जाते हैं। मैं स्टडी पूरी करके एक सफल एजुकेटेड पर्सन बनकर निश्चित तौर पर गरीब परिवारों के बच्चों के लिए स्कूल और कॉलेज खोलना चाहती हूं। अपनी बात के अंत में वो लिखती हैं कि हम सुरक्षित और शिक्षित भविष्य की कामना करते हैं। तक धिनाधिन त्रिशा को भी सलाम करते हुए कामना करता है कि वो सफलता हासिल करें।

जाहिर है कि बच्चे भी उन मुद्दों को लेकर संवेदनशील है, जिनकी चर्चा अक्सर बड़े बुजुर्ग करते रहे हैं। त्रिवेणीघाट पर तकधिनाधिन के समय भी यह बात सामने आई थी कि युवा आने वाले कल को बेहतर बनाने की पहल कर चुके हैं, वो भी अपने दम पर। उनके इरादों से इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाला कल बेहतर होगा। तक धिनाधिन अपने हर पड़ाव पर बच्चों, किशोरों और युवाओं से उनके नजरिये पर बात करता है।

हम ऋषिकेश में राजेश चंद्रा, गीत सुनेजा, देहरादून में गजेंद्र रमोला, अरुण यादव, मनीष कुमार उपाध्याय, बेटियों मीना पासवान, गुंजा, त्रिशा कुलहान, शीरानी मुदगल, पौड़ी जिले में निकिता सिल्सवाल से मिले, जिनकी सोच और प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि हमारा, आपका और आने वाली पीढ़ियों का कल, पहले से कहीं ज्यादा बेहतर होगा।

सहस्रधारा रेजीडेंसी में वरिष्ठ पत्रकार अतुल बरतरिया और अंजू बरतरिया जी के सहयोग से आयोजित तकधिनाधिन में क्लास 1 से 10 तक बच्चे बड़े उत्साह से शामिल हुए। सहस्रधारा रेजीडेंसी के बच्चे बहुत हाजिर जवाब और अनुशासित भाव से कार्यक्रम में शामिल हुए। हमारा सवाल समाप्त नहीं हो पाता कि बच्चे जवाब देने के लिए हाथ उठा देते। बच्चों से पूछा, क्या हमारे साथ आया पेड़ अपार्टमेंट में आपके बीच आ सकता है। इस सवाल पर लगभग सभी बच्चे बोल उठे, पेड़ आपके साथ आया है। ऐसा नहीं हो सकता। पेड़ कहां चलता है।

मैंने फिर पूछा, क्या वो यहां हॉल में आ सकता है। बच्चों ने समझ लिया कि कोई पेड़ नहीं आया इनके साथ, ये तो वैसे ही बोल रहे हैं। उन्होंने भी कह दिया, पेड़ आया है तो बुला लो। देख लेते हैं कौन सा पेड़ है, जो इधर उधर घूमता है। बच्चों ने जैसे ही परमिशन दी, हम समझ गए कि ये बच्चे तो बहुत होशियार हैं। हमने कहा, क्या बात करते हो, जब आप रेल या कार से सफर करते हो तो पेड़ पीछे की ओर दौड़ते हुए नहीं दिखते। कुछ छोटे बच्चे बोले, हां हमने देखा था, पेड़ दौड़ रहे थे।

गर्व ने कहा, पेड़ क्या चांद और तारें भी घूमते हैं। मैं तो हमेशा देखता हूं आसमान में चांद कभी इधर दिखता है और कभी उधर। हमारे मूवमेंट की वजह से पेड़ हमें घूमते हुए दिखाई देते हैं। वैसे वो जाते कहीं नहीं, अपनी जगह पर ही होते हैं। इस बीच बच्चे यह भूल गए कि अपार्टमेंट के बाहर खड़े पेड़ को हॉल में बुलाना है।

एक बच्चे ने जवाब दिया कि पेड़ के पैर नहीं होते। दूसरे ने कहा, वो कहां जाएगा, उसको कहीं नहीं जाना। पेड़ इधर उधर घूमेगा तो उसको पानी भी नहीं मिल पाएगा। हमने कहा, पानी तो धरती से मिल जाएगा। जब उसको पानी चाहिए, वो नदी के पास चला जाएगा। एक जवाब मिला कि अगर पेड़ घूमने जाएगा तो इंसान नहीं घूम पाएगा। हमने सवाल बदल दिया, पेड़ हमें क्या देता है। यह पूछते ही जवाब की बौछार हो गई। फल देता है, पानी देता है, छाया देता है, खाना देता है, पेपर देता है, हवा देता है, आक्सीजन देता है। अगर पेड़ घूमने चला गया तो एक बच्चा बोला, हमें कुछ भी नहीं मिलेगा। आक्सीजन भी नहीं। न तो वो कार्बनडाइ आक्साइड ले पाएगा और न ही आक्सीजन दे पाएगा।

बच्चों को पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, कहानी सुनाई, जिसे काफी पसंद किया गया। आखिरकार बच्चों को पेड़ का महत्व समझाने में सफलता मिल ही गई, क्योंकि वो एक साथ बोले, पेड़ों को नहीं काटना चाहिए।

केजी की स्टूडेंट त्रिशिका ने जादूगर और पंछी की कहानी सुनाई। क्लास टू की अनुष्का ने एक लड़की की कहानी सुनाई, जो उन्होंने किसी किताब में पढ़ी थी। क्लास फोर के स्टूडेंट सुबल ने इंगलिश में लॉयन की कहानी लिखी, जो उनको टीचर ने सुनाई थी। क्लास 6 के गर्व ने बच्चों को अपनी साइकिल के बारे में बताया। उनको अपनी साइकिल बहुत पसंद है। साइकलिंग उनकी हॉबी है। जब पापा उनके लिए साइकिल लेकर आए तो वह बहुत खुश हुए थे। बताते हैं कि गियर वाली साइकिल काफी रिलेक्स वाली है। पापा ने भी उनकी साइकिल चलाई।

क्लास फाइव की स्टूडेंट श्रेया ने इंगलिश में लिखे लेख में दीवाली सेलीब्रेशन के बारे मे बताया। श्रेया ने बच्चों से बताया कि उनको किताबें पढ़ने का शौक है। पापा उनके लिए बुक्स लेकर आते हैं। वह बहुत सारी बुक्स पढ़ना चाहती हैं। बुक्स से हमें बहुत नॉलेज मिलती है। उनको फिक्शन स्टोरी पढ़ना पसंद है।

श्रेया ने कौआ, हंस, तोता और मोर की कहानी सुनाई, जिसका संदेश है कि हम जैसे भी दिखते हैं, जैसे भी रहते हैं, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए। हमें अपनी बेहतरी के लिए कार्य करना चाहिए, न कि किसी दूसरे से बराबरी और ईर्ष्या के लिए। क्लास टू की तनिष्का ने एक सवाल पर कहा कि हमें नदियों में कूड़ा नहीं फेंकना चाहिए। लक्ष्य ने कहा, नदी हमें हमेशा आगे बढ़ते रहना, सिखाती है।

बच्चों ने हवा को एक दिन की छुट्टी दे दी जाए तो क्या होगा, अगर आप नदी होते तो इंसानों से क्या कहते… जैसे सवालों से जवाब दिए। बच्चों को हमने पंचतंत्र की कहानी कछुआ और दो हंस सुनाई, जिसके माध्यम से संदेश दिया गया कि ज्यादा बोलना अच्छी बात नहीं है। कहां, कब और क्या बोलना है, इस बात का भी ध्यान रखा जाए।

हमने उनको लगभग 40 साल पहले सरकारी स्कूल में पढ़ी कविता-
हाथी पहने पेंट और हथिनी पहने मैक्सी।
निकल पड़े वो खुली सड़क पर, ढूंढने लगे वो टैक्सी।
तभी मिली उनको एक टैक्सी, जिसमें ड्राइवर बंदर।
झटपट खोल द्वार, हाथी लगा सरकने अंदर।
बंदर बोला, सुनो महाशय, और कहीं तुम जाओ।
ये मेरी छोटी सी गाड़ी, ट्रक कहीं रुकवाओ।

कार्यक्रम में आरव्या, प्राज्या शर्मा, तनिष्का, अनुष्का, गर्व, आरवी, अवनी, आकांक्षा, अर्नव, लक्ष्य, रुद्रांश, पार्थ, यश, काव्या, शौर्या, श्रेया, त्रिशिका, कुनाल, अभिभावक प्रियंका, पारूल आदि शामिल हुए। अगले पड़ाव पर फिर मिलते हैं, तब तक के लिए आप सभी को बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तकधिनाधिन।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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