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उल्टा पड़ गया केकड़े का आइडिया

किसी जंगल में एक झील थी, जिसमें रहने वाले हंसिनी और केकड़े में गहरी दोस्ती थी। दोनों काफी खुश थे और खूब बातें करते थे। एक दिन हंसिनी ने देखा कि झील के पास एक सांप रहने लगा। उसने सोचा, सांप होता तो खतरनाक है, लेकिन मेरा क्या बिगाड़ेगा, यहां रहेगा भी तो मुझे क्या। उसने केकड़े को बताया कि उसके ठिकाने के पास सांप रहने लगा है। केकड़े ने कहा, सांप से सतर्क रहना। कहीं तुम्हें नुकसान न पहुंचा दे।

कुछ दिन तक तो सबकुछ अच्छा चलता रहा। एक दिन हंसिनी झील में तैरने के बाद अपने ठिकाने पर पहुंची तो उसके अंडे गायब थे। उसे काफी दुख हुआ। कुछ दिन बाद उसने फिर अंडे दिए। खाने की तलाश से लौटकर देखा तो इस बार भी अंडे गायब थे। हंसिनी को शक हो गया कि सांप उसके अंडे खा रहा है। उसने केकड़े को इस घटना की जानकारी दी। केकड़े ने कहा, मैंने तो तुम्हें पहले ही बताया था, सांप से सतर्क रहना।

केकड़े ने कहा, एक आइडिया है। हंसिनी ने पूछा, जल्दी बताओ, जल्दी बताओ। केकड़े ने बताया, थोड़ी ही दूरी पर झील किनारे एक नेवला रहता है। नेवले और सांप में दुश्मनी होती है। क्यों न हम इस दुश्मनी का फायदा उठाएं। केकड़े ने हंसिनी से कहा, तुम बहुत सारी मछलियां पकड़कर सांप के ठिकाने से लेकर नेवले के बिल तक बिखेर दो। इसके बाद छिपकर नजारा देखो।

हंसिनी ने केकड़े के आइडिया पर काम किया। नेवला अपने बिल पर लौटा तो उसने वहां बहुत सारी मछलियां पड़ी देखीं। उसके मुंह में पानी आ गया। हंसिनी और केकड़ा छिपकर यह नजारा देख रहे थे। नेवला बिखरी पड़ी मछलियों को इकट्ठा करते करते सांप के ठिकाने पर पहुंच गया। उसने सोचा, ओह लगता है, सांप उसके बिल के पास पड़ी मछलियों को बिखेरते हुए अपने घर तक लाया है।  उसने सांप को ललकारते हुए कहा, हिम्मत है तो लड़कर दिखा।

सांप ने चुनौती स्वीकार करते हुए नेवले पर हमला कर दिया। थोड़ी ही देर में नेवला सांप पर भारी पड़ गया और उसे मार डाला। सांप को मारने के बाद नेवला वहीं रहने लगा, क्योंकि उसको झील में बहुत सारी मछलियां दिख गई थीं। कुछ दिन बाद उसकी नजर हंसिनी के अंडों पर पड़ गई। अब वो हंसिनी के अंडों को खाने लगा। सांप से भी खतरनाक दुश्मन देखकर हंसिनी और केकड़ा बहुत घबरा गए।

केकड़े ने हंसिनी से कहा, कहीं एेसा न हो कि नेवला तुम्हें ही मार दे। इसलिए अच्छा यह होगा कि हम इस इलाके से दूर चले जाएं। इसके बाद दोनों किसी दूसरी झील की ओर चले गए। हंसिनी ने केकड़े से कहा कि सांप को खत्म करने के चक्कर में हमने उससे भी ज्यादा ताकतवर दुश्मन पाल लिया था। तभी तो कहते हैं कि दुश्मन को हराने के लिए आजमाए जाने वाले आइडिया को अच्छी तरह परख लिया जाना चाहिए, नहीं तो भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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