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पृथ्वी की कैसी छवि

उमेश राय
धरा का धैर्य चुक गया है,
अनाचार असीम जो हो गया है यहाँ…
भोगवादी जीवन ने सारे वन-मधुवन छीन लिए हैं,
काया हो चुकी है छायाविहीन.
मर्यादाएं जब भग्न हो जाती हैं बेतरह,
बेहतरी का प्रकाश तब बन जाता है काश!

फिर,कालिमा का छा जाना तय है,
धरा के आकाश में.
पादप-पेड़ का घटते जाना,
कंक्रीट का बढ़ता फैलाव,
प्लास्टिक का सटीक भय,
शुद्धता का होता ह्रास.

लोभ की मानसिकता में भला का भाव होता ही नहीं,
धन का मन शुभ का सुमन नहीं खिला सकता…
इसीलिए,करुणा-प्रेम-सेवा का अभाव है हर जगह,
शांति,आनंद,सृजन लुप्तप्राय हैं यहाँ.
पृथ्वी का स्त्रीत्व,द्वैतवादी मानस से हताहत है,
क्षत-विक्षत….

प्रेम सौदा नहीं सौदागर!
सर्वस्व समर्पण का यह सुघर-दर.
प्रदूषित हृदय,सुवासित कैसे हो सकता है?
वह तो दुर्गंध को बटोरता – फैलाता है नित-नवीन..

धरा का आधार प्रेम है मनुज!
संवेदनहीन व नेहविहीन जीवन,
जिंदगी को बंदगी से दूर ,
गंदगी से करता है युक्त,
जहाँ जीवन,रिसता है, खिसकता है….
धीरे-धीरे मृत्यु की ओर.

मैं, शव नहीं, शिव का सद्भावी हूँ,
मेरी पृथ्वी! स्त्रीत्व के बहु रूप-रूपाय!
तेरा शुभ से आचमन ही ,
मानवता का है उजला भविष्य …
मैं, यहीं तलाश करता हूँ,
लाश से परे मानवीय आस की.

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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