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खोपड़ी की सलाह

अफ्रीका के किसी कबीले का शिकारी शिकार करते हुए एक विशाल पेड़ पर चढ़ गया। उसने देखा कि पेड़ की जड़ के पास एक मानव खोपड़ी रखी है। खोपड़ी ने शिकारी से कहा कि तुम अपने गांव के लोगों को पहाड़ी पार के जंगल में ले जाओ, जहां जाकर कोई भी भूखा नहीं रहेगा।

वहां खाने के लिए बहुत स्वादिष्ट फल मिलेंगे, लेकिन अपने गांव में किसी को भी यह नहीं बताना कि तुम्हें ये बात किसने बताई। शिकारी ने खोपड़ी से पूछा कि तुम यहां कैसे आए। खोपड़ी ने कहा, मेरे मुंह ने मुझे मार दिया था। कभी मैं भी तुम्हारे जैसा था। शिकारी अपने गाँव लौट आया और तुरंत सभी को बताया कि बात करने वाली खोपड़ी ने मुझे भोजन का एक क्षेत्र दिखाया है।

मुखिया ने उसे कहा, तुम झूठ बोल रहे हो। शिकारी ने कहा, तुम मेरे साथ आओ, मैं साबित कर दूंगा कि मैं जो कह रहा हूं, वह सच है। मुखिया ने कहा, अगर तुम्हारी बात झूठ साबित हुई तो तुम्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सभी पेड़ के पास पहुंचे। शिकारी ने खोपड़ी से कहा, तुम बताओ, क्या तुमने मुझे यह नहीं बताया कि पहाड़ी पार के जंगल में खाने के लिए बहुत स्वादिष्ट फल मिलेंगे।

खोपड़ी चुप रही, उसने शिकारी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। शिकारी ने एक बार फिर खोपड़ी से सवाल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इस पर मुखिया ने शिकारी को मौके पर ही मौत के घाट उतार दिया। कुछ दिन बाद पेड़ के नीचे दो खोपड़ी थीं। पहले ने दूसरे से कहा, मैंने तुमसे कहा था न कि मैं यहां अपने मुंह की वजह से हूं। वैसे ही जैसे तुम यहां पहुंचे हो।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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