FeaturedTK DHINAA DHIN

तक धिनाधिनः आगे बढ़ने दो

नीलम उम्र यही कोई 12-13 साल, कहानियां और कविताओं में किसी अनुभवी लेखक जैसा भाव। चार साल पहले देहरादून आई नीलम क्लास आठ की छात्रा है। पढ़ाई में सबसे आगे रहती है। किसी भी विषय की बात करें, उसके ज्ञान की सब तारीफ करते हैं। नीलम भी उन सवा तीन सौ से ज्यादा बच्चों में से एक है, जिसके लिए जीने का मतलब केवल सांस लेना भर नहीं है, बल्कि हर पल हर समय आगे बढ़कर अपने देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरना है। तभी तो नीलम सुना रही है-

आगे बढ़ने दो
होगा एक बार फिर से तेरा जिक्र।
चाहे कोई भी करे, तेरा जिक्र।।
मगर हमारी सांसें याद रखेंगी तुझे।
अभी तो बाकी है जिंदगी।।

अभी तो अंधेरों में हम भी जी रहे हैं।
मगर कभी न कभी उजाला भी होगा।।
तब मैं भी जीऊंगी उजाले में।
अगर तू साथ दे तो मेरा।।

होगा एक बार फिर से तेरा जिक्र।
न कोई खामोश है, न कोई नजर आता है।।
बस नाराजगी है होठों में और कुछ नहीं।
बस एक बार तू मिल जा तो सारी नाराजगी दूर हो जाएगी।।

संभाल ले इस राही को।
जो हर दरबार में भटकता है।।
थाम ले उसको जो संभल नहीं पाता।
बस उसके हाथों को पकड़ कर।
उसे सही राह बता दे।।

तेरा भी वो शुक्रिया करेगा।
एक बार संभल के तो देख।।
देख उसकी आंखों में वो बात है।
और उसमें भी तो जज्बात है।।

कोई कुछ भी कहे, बस थाम ले उसे।
कोई कहता रहे , कहने दो।।
तू थाम ले उसे तेरा शुक्रगुजार रहेगा।

कहने वाले कहते रहे हैं।
बस हमें तो आगे बढ़ना।
बस हमें तो आगे बढ़ना।।

नीलम ही नहीं चांदनी और बड़ी संख्या में बेटियां हैं यहां, जो हर पल आगे बढ़ना चाहती हैं। कोई टीचर बनना चाहता है और किसी की इच्छा सेना में जाने और किसी की अफसर बनने की तमन्ना है। अपने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं और जी जान से कोशिश कर रहे हैं। इनके सपनों को उड़ान देने के लिए पंख लगाने का काम कर रहे हैं

राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हुकुम सिंह उनियाल और उनकी टीम, जिनमें संगीता तोमर और कौशल सर का विशेष सहयोग है। वैसे से इस टीम में 35 से ज्यादा लोग शामिल हैं, जो पढ़ाने से लेकर बच्चों के भोजन प्रबंध तक का जिम्मा उठाते हैं।

जिक्र कर रहे हैं राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, 55 राजपुर रोड का, जहां मानवभारती प्रस्तुति तक धिनाधिन की छठीं कड़ी का आयोजन किया गया। रविवार 13 जनवरी 2019 समय सुबह साढ़े नौ बजे का तय किया गया। बेटे सक्षम के साथ ठीक साढ़े नौ बजे हम राजकीय पूर्व विद्यालय में पहुंच गए। मैंने पहली बार इस स्कूल में प्रवेश किया था। स्कूल परिसर में प्रवेश करते ही मुझे लगा कि बच्चों की यह अलग ही दुनिया है, जहां विद्या है, संस्कार है, अच्छा व्यवहार है, बड़ों का सम्मान है और छोटों के साथ स्नेहभाव है, संवेदनशीलता है , सहयोग है और लगन के साथ धैर्य भी है।

नियो विजन के संस्थापक पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर गजेंद्र रमोला वहां पहुंच गए और मुझे बच्चों के डायनिंग हॉल में ले गए। मैंने दो सौ से ज्यादा बच्चों, जिनमें सबसे छोटे साढ़े तीन साल के बच्चे से लेकर 15-16 साल तक बच्चे शामिल हैं, को एक साथ नाश्ता करते देखा। जिसने नाश्ता कर लिया, वह अपने बर्तनों को धोने के लिए ले जा रहा था। एक बात जो मुझे पसंद आई, वह यह कि कोई भी बच्चा अन्न की बर्बादी नहीं कर रहा था। जितना नाश्ता लिया, उतना खाया। बड़े बच्चे अपने से छोटे बच्चों की मदद कर रहे थे।

वो उनको हाथ धोने और उनके बर्तन साफ करने में सहयोग कर रहे थे।क्या आप यकीन करेंगे कि दो सौ से ज्यादा बच्चे एक साथ नाश्ता कर रहे हों और स्वच्छता बनी रहे। स्वच्छता का यह पाठ इन बच्चों ने जहां से सीखा, वो जगह है राजकीय पूर्व माद्यमिक विद्यालय 55 राजपुर रोड। सबसे ज्यादा साधुवाद तो उन लोगों का है, जो इन बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना ही नहीं देख रहे बल्कि उनको राष्ट्र सेवा के लिए तैयार भी कर रहे हैं, वो भी पूरे अनुशासन और लगन के साथ।

अब बारी आई तक धिनाधिन की। तय हुआ कि डायनिंग हॉल में ही बच्चों से मुखातिब हुआ जाए। हमने बच्चों से पूछा, आपको कहानियां पसंद हैं। लगभग सभी ने हाथ उठाकर सहमति व्यक्त करते हुए कहा, जी हां। पहले अपना परिचय दिया और उनसे पूछा कि नेचर के बारे में आप क्या जानते हैं। छोटे बच्चे ने जवाब दिया, नेचर मतलब व्यवहार। हमने फिर पूछा, सूरज, चांद, तारे, मिट्टी, नदियों को किसने बनाया, उनका जवाब था नेचर ने। नेचर यानि प्रकृति ने।

हमने कहा, मान लीजिए आप वायु हैं तो इंसानों को लेकर आप क्या सोचेंगे। उनको लेकर आप नेचर से क्या कहोगे। एक बच्चे ने जवाब दिया, मैं वायु होता तो नेचर से कहता कि इंसान मुझे प्रदूषित कर रहा है। वह काला धुआं फैलाकर वायु में जहर घोल रहा है। हमने कहा, जब वायु होने की कल्पना मात्र से आपको बहुत दिक्कतें हो रही हैं तो सोचो, हकीकत में वायु को कितना कष्ट पहुंचता होगा। इसी तरह बच्चों ने नदी और मिट्टी की पीड़ा को भी जाहिर किया। बच्चों ने संकल्प लिया कि वो कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिससे वायु और जल को कोई नुकसान पहुंचे।

कक्षा आठ के छात्र विवेक ने स्वरचित कहानियां सुनाईं। विवेक की कहानियां सभी बच्चों ने पसंद की, जिसमें एक कहानी उनकी अपनी लिखी है, जो बताती है कि संघर्ष में हार नहीं माननी चाहिए, एक दिन जीत का भी आता है। हमने बच्चों को साहसी नन्हा पौधा और पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, कहानी सुनाई। पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता सवाल पर बच्चों ने पहले तो यही जवाब दिया कि उसकी जड़ें होती हैं। उसकी जड़ों को मिट्टी ने जकड़ा है। लेकिन विवेक का जवाब कुछ अलग था, जो अभी तक हमने नहीं सुना था।

विवेक ने बताया कि अगर पेड़ घूमने चला गया तो मिट्टी बह जाएगी, सॉयल इरोजन यानि भूक्षरण हो जाएगा। हमारे इस सवाल पर बच्चों के जवाब का तक धिनाधिन शुरू हुआ, जो काफी देर तक चला, जिसमें छोटे बच्चों ने भी बड़े उत्साह से अपने जवाब सुझाए। किसी ने कहा, हमें छाया कौन देता, किसी ने कहा, हमें फल कौन देता, किसी ने कहा, आक्सीजन कौन देता. किसी का जवाब था कि पेड़ नहीं होते तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता।

बच्चों ने विवेक और नीलम के साथ मिलकर कहानी क्लब बनाने का वादा किया। हमने उनसे कहा कि आप अपने आसपास होने वाली गतिविधियों, अपनी यादों, अपने तीज त्योहारों, मेलों, अपने शहर, गांव पर कुछ न कुछ लिखें। आप कल्पना करो और यर्थार्थ की ओर बढ़ो। बच्चों से हमने वादा किया कि कहानियां लिखने में कोई सहयोग चाहिए तो हमारी मदद लीजिए। कुछ वादों और आज के तक धिनाधिन की कुछ यादों के साथ हम लौट आए….। हमारे अगले पड़ाव तक आप सभी को खुशिय़ों और शुभकामनाओं का तकधिनाधिन।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button