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आज कजरी तीज है, जानिये महत्व

  • उमा उपाध्याय-

आज कजरी तीज है। आज के दिन महिलाएँ प्रेममय वैवाहिक जीवन का उत्सव मनाती हैं। साथ ही इस पर्व का गहरा धार्मिक महत्व भी है। आइए, जानते हैं इस तीज से जुड़ी विशेष बातें…

उमा उपाध्याय
उमा उपाध्याय

कजरी तीज का मुहूर्त- यूँ तो कजरी तीज का कोई विशेष मुहूर्त नहीं होता है, लेकिन पारंपरिक तौर पर धार्मिक रीति-रिवाज़ों को किसी शुभ मुहूर्त में करने का चलन है। इस दिन के पंचांग के अनुसार निम्न समय इसके लिए उत्तम हैं – 07:31 से 09:08, 09:08 से् 10:01, 10:53 से 11:44, 14:20 से 15:24, 18:54 से  20:17 से  21:39 बजे तक।

(उपर्युक्त मुहूर्त उत्तम चौघड़िया के आधार पर दिए गए हैं। इनमें से अशुभ समय को हटा दिया गया है।)

अभिजीत मुहूर्त: 11:44:56 से 12:36:39 तक

सूर्योदय: 05:53:39, सूर्यास्त: 18:54:08, चन्द्रोदय: 21:03:00

कजरी तीज की विशेषता

प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णपक्ष की तृतीया को यह पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। भारत सहित समूचे दक्षिण एशिया में यह त्योहार विभिन्न नामों से प्रचलित है, मसलन बड़ी तीज, कजली तीज, सत्व तीज और बूढ़ी तीज आदि।कजरी तीज का उत्सव अधिकांश क्षेत्रों में महिलाएँ उपवास रखती हैं, देवी की आराधना करती हैं, झूला झूलती हैं, कजरी गाती हैं, भिन्न-भिन्न पकवान बनाती हैं और श्रृंगार करती हैं।कई लोग इस दिन जौ, गेहूँ, चने आदि को घी, फल-मेवे वग़ैरह में मिलाकर सत्तू बनाते हैं। चन्द्र-दर्शन के बाद इसे खाने की परम्परा है। यही वजह है कि इस पर्व को सतूड़ी तीज या सत्त्व तीज के नाम से भी जाना जाता है।

कुछ जगहों पर इस दिन सिंजारे भी उपहार में दिया जाता है। बहुएँ मिठाई और धन अपनी सास को देती हैं।इस दिन विशेषतः गौ माता का पूजन भी होता है। गाय को आटे की 7 लोइयों पर घी और गुड़ रखकर खिलाने के बाद ही भोजन किया जाता है।उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में इसे कजरी तीज के नाम से जाना जाता है। इस दिन कजरी गीत गाए जाते हैं और उनकी अंताक्षरी भी होती है। नौकाओं पर बैठकर भी कजरी गीत गाए जाते हैं। ये गीत विशेषतः वर्षा ऋतु से जुड़े होते हैं।प्रायः इस दिन तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और झूलों का आनन्द लिया जाता है। एक वर्ष में चार तीज त्योहार होते हैं। कजरी तीज के बाद वर्ष में सिर्फ़ एक तीज ही शेष रह जाती है – हरतालिका तीज। 2016 में हरतालिका तीज 4 सितम्बर 2016 को मनाई जाएगी।

Tags

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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