Short story- Moral Values

चूहों की दोस्ती

दो चूहों में गहरी दोस्ती हो गई। इनमें एक शहर का रहने वाला था और दूसरा गांव में रहता था। एक दिन गांव वाले चूहे ने शहर वाले चूहे को आमंत्रित किया। शाम को एक खेत में मुलाकात हुई। अपने साथी को डिनर में जौ के दाने और जड़ें परोसीं। इस पर शहरी चूहा निराश होकर बोला, दोस्त कैसी जिंदगी जी रहे हो तुम। ये जो चीजें तुम खा रहे हो, हमारे शहर में चीटियां भी नहीं खातीं। तभी तो मैं सोच रहा था कि तुम कमजोर क्यों लग रहे हो। ऐसा जीवन किसी काम का नहीं है। मेरी बात सुनो, शहर चलो। हम दोनों खूब डटकर खाएंगे।

शहर का चूहा बोला, शहर के गोदामों में हमारा राज चलता है। जितना मर्जी खाओ, मनमर्जी का खाओ। वह जिद्द करके अपने साथी को शहर लेकर आ गया। यहां एक गोदाम में एंट्री करते ही गांव वाले चूहे की आंखें खुली रह गईं। वह सोचने लगा कि वाकई यह सही कह रह था, शहर में तो बहुत मजे आएंगे। वहां कहां खेतों में दौड़ता रहता।

उसने अपने दोस्त से कहा, जल्दी करो, बहुत भूख लगी है। शहर के चूहे ने कहा, देखते क्या हो, जो चाहे खा लो। गांव के चूहे ने ब्रेड के पैकेट को कुतर दिया। अभी उसने ब्रेड का स्वाद लेना शुरू ही किया था कि अचानक गोदाम का गेट खुलने लगा। गोदाम में रोशनी होते देख शहरी चूहे ने उसको सतर्क कर दिया और दोनों झट से बोरियों के पीछे से होकर जा रही नाली में छिप गए।

थोड़ी देर में दरवाजा बंद हो गया और दोनों चूहे फिर बाहर निकल आए। गांव वाले से शहरी चूहे से पूछा, दोस्त यह सब क्या है। हमें छिपना क्यों पड़ा। क्या कोई आफत थी। शहर वाला चूहा बोला, दोस्त यह सब तो झेलना पड़ता है। लेकिन कोई खतरा नहीं है। कभीकभार ही ऐसा होता है। दोनों एक बार फिर ब्रेड खाने में जुट गए। थोड़ी देर बाद फिर दरवाजा खुला और दोनों को फिर संकरी नाली में छिपना पड़ गया।

https://youtu.be/PWyUu7xVsCg

इस बार दरवाजा काफी देर तक खुला रहा। तब तक दोनों चूहों के प्राण संकट में रहे। गांव वाले चूहे ने सोचा कि यहां खाने को तो बहुत कुछ है, लेकिन मौत हमेशा सिर पर रहती है। यहां वह सुरक्षित नहीं रह सकेगा। उसने तुरंत फैसला कर लिया कि अब एक मिनट भी शहर में नहीं रहेगा।

उसने शहरी चूहे से कहा, यह सब कुछ तुम ही झेलो। मेरे बस की बात नहीं है। मैं तो गांव जाकर खेतों में घूमूंगा। जहां मन करेगा, वहां रहूंगा और जैसा मिलेगा, वैसा खाऊंगा। मैं तो गांव में ही खुश हूं। तुम चाहो तो मेरे साथ चले चलो। यह कहकर वह गांव की ओर दौड़ लिया। इस कहानी से संदेश मिलता है कि सुरक्षा सबसे पहले है। अपना घर सबसे अच्छा है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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