Creativity

शहर आना होगा तुम्हारा

  • अनीता मैठाणी

तुम कहते हो

अनीता मैठाणी

शहर आना होगा तुम्हारा

मैं अकेले में मुस्कुरा उठती हूँ,

लजाकर भारी कदमों से

आईने तक चली जाती हूँ,

जिस तक,

मैं अब, जाती नहीं हूँ ।

खुद को निहारते हुए सोचती हूँ

कब से बालों को कलर नहीं किया

चांदनी सी झलकने लगी है,

फेसपैक सा कुछ लगाने का सोचती हूँ

फिर उंगलियों में दिन गिनती हूँ

आज ही सब कर लिया,

रंग ही है,

कब तक टिकेगा।

तुम्हारे आने से ठीक

एक दिन पहले का दिन तय करती हूँ।

अब तक जो कैलेण्डर

सिर्फ छुट्टियों के लिए देखती थी

उसे अब बार-बार, बिना बात देखती हूँ।

रोज आईने पर नजर उठती हैं,

तुम्हारे आने की खुशी से

जो निखार चेहरे पर आया है

काश वो तुम्हारे शहर से होकर

लौट जाने के बाद भी बना रहे

सोचती हूँ,

इंतजार करती हूँ।

तुम्हारे शहर आने के दिन

और फिर

चले जाने के दिन,

बाद भी तुम्हारी

कोई ख़बर नहीं है।

और फिर

तुम बताते हो कि;

काम बहुत था

समय का घोर संकट था,

इस कर

मिलना संभव नहीं हो पाया।

मुझे आस है फिर,

तुम्हारे, फिर आने की,

चुप सी मैं, तब तक,

जब तुम फिर कहोगे कि

शहर आना होगा तुम्हारा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button