Analysis

दवाइयों और प्राकृतिक रेशों का खजाना है कंडाली

डॉ. राजेन्द्र डोभाल महानिदेशक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
उत्तराखंड

बचपन मे कंडाली की मार तो सभी ने खाई होगी, लेकिन पूर्व में इसका वैज्ञानिक एवं औद्योगिक महत्व किसी को मालूम नहीं था। आज यही कंडाली विश्व भर में eco-fabrics नाम से प्रसिद्ध है तथा Italian fashion show में धूम मचा रही है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊंनी मे सिंसोण के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Urtica deoica है तथा Urticacae परिवार का पौधा है। उत्तराखण्ड में कडांली की खेती तो नहीं की जाती अपितु यह प्राकृतिक रूप से बंजर भूमि, रास्ते व सड़कों के किनारे स्वतः ही उग जाती है। जबकि विश्व के अन्य देशो मे कंडाली के वैज्ञानिक व औद्योगिक महत्व को जानकर वर्षों से कंडाली को औद्योगिक रूप से उगाया जाता रहा है। आज विश्व भर में कंडाली की पत्तियों की चाय, कैपसूल तथा कंडाली eco-fabrics नाम से धूम मचा रही है।

कंडाली का वैज्ञानिक महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें विटामिन A,C Iron, पोटैशियम , मैग्निज तथा कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसको प्राकृतिक Multi विटामिन नाम भी दिया गया है। कई तरह के विटामिन से भरपूर होने के साथ-साथ यह लगभग 16 Amino Acids Carotenoids (Beta Carotene) का भी प्रमुख स्रोत है। पारम्परिक रूप से कडांली में मौजूद कई महत्वपूर्ण अवयव किडनी रोग, UTI तथा हृदय रोगों के उपचार के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। Carboxylic Acid तथा Formic Acid के विद्यमान होने की वजह से इसको कीटनाशक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके कांटों मे मौजूद हिस्टामीन की वजह से मार के बाद जलन होती थी। कंडाली मे गेहूं की अपेक्षाकृत Tanin, Total Polyphenol Carotenoids की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। कंडाली में प्रोटीन 28.5g/100gm, वसा 5.2g/100gm, कार्बोहाइड्रेट 47.4g/100gm, पोटैशियम – 917.2gm/100gm, कैल्शियम – 113.gm/100gm तक पाए जाते है।

वर्तमान में कंडाली के ऊपरी भाग में 6 प्रकार के तत्व जैसे Cafferic acid, rutin, quercetin, hyperin, isoquercitin तथा beta-sitosterol पाये जाते हैं तथा विटामिन A, C तथा D से परिपूर्ण होने के साथ-साथ 21-23 प्रतिशत प्रोटीन, 9-21 प्रतिशत फाइबर, 50 micro g/gm carotene, 4 micro, g/gm Ribolloflavin तथा 10 micro g/gm Vitamin E पाया जाता है। यदि कंडाली को Plautry feed में मिलाया जाए तो 15-20 प्रतिशत प्रोटीन तथा 60-70 प्रतिशत विटमिनस intake बढ जाता है, जो कि green Ploutry Feed की जरूरत को 30 प्रतिशत तक कम कर देता है।

औद्योगिक रूप से यह Fiber के साथ-साथ/औद्याेगिक Chlorophyll का भी मुख्य स्रोत माना जाता है। चूंकि कंडाली एक बहुवर्शि पौधा है, और यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध से Fiber Plant के लिये औद्योगिक रूप से उगाया जाता है। कंडाली के पौधे को सब्जी, चारा, सौंदर्य प्रसाधन, औषधि तथा biodynamic preparations में उपयोग किया जाता है। Cotton की ईजाद से पूर्व यूरोप मे कंडाली का फाइबर के रूप में इस्तेमाल द्वितीय विश्व युद्ध के समय आरंभ हुआ था। तत्पश्चात 1940 में लगभग 500हेक्टेयर में कंडाली को फाइबर उत्पादन के लिए जर्मन एवम Austria में उगाना शुरू किया गया।

यह साधारण से बिना किसी भारी-भरकम तकनीकी के उगने वाली कंडाली एक बेहतर औद्योगिक  फसल के रूप में परिवर्तित की जा सकती है। केवल फाइबर ही नही बल्कि और कई उत्पाद भी तैयार किए जा सकते है। वैसे तो Cotton एक high water consumable के साथ-साथ High pesticide consumable फसल बन चुकी है तथा एक GM Cotton का भविष्य अभी संशय भरा है, जिससे कंडाली विश्वभर में फाइबर उत्पादन हेतु बेहतर फसल मे परिवर्तित की जा सकती है तथा प्रदेश की आर्थिकी के लिये बेहतर साधन बन सकती है। विश्व के कई देशों में कई कम्पनियां विभिन्न शोध संस्थानों के साथ मिलकर उच्च कोटी की कंडाली के औद्योगिक उत्पादन पर जोर दे रही हैं। जैसे FinFlax Ltd ने Agriculture Research Centre of Finland, तथा Institute of Agri biotechnology, Austria, Institute of Applied Research, Germany, Institute of Plant Production and breeding Switzerland तथा अन्य कई वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा Developing of cultivation methods, fiber processing, Mechanical fiber processing, production of knitted Clothes पर शोध कार्य किया गया, ताकि कंडाली से निर्मित फाइबर की विश्वभर में मांग पूरी की जा सकें। विश्वभर में इसको “Cotton replacement using lower environmental Impacting crops” का नाम दिया गया। 

पूर्व मे कंडाली को most undervalued of economic plant की तरह जाना जाता था जबकि कंडाली को Cotton की तरह फाइबर तथा अन्य कई उद्योगों में जैसे Cosmetic, Culinary, Oil के साथ caffeine free green tea के रूप में विश्व मे जाना जाता है। वर्तमान में कंडाली से Silky Fiber का निर्माण किया गया, जिसे “Ramie” के नाम से विश्व में जाना जाता है।

कंडाली की चाय को यूरोप के देशो में Power House of Vitamin and minerals माना जाता है। जो Immunity को भी बढ़ाता है। कंडाली की जड़ों से Benign Prostatic Hyperplasia के उपचार के लिए भी प्रयोग किया जाता है तथा बाजार मे healthy Prostate तथा Normal Urinary flow के लिए Nettle Root Capsule मौजूद है। जर्मन कमीशन ने भी urinary infections तथा Urinary gravel के रोकथाम के लिए कंडाली की पत्तियों से उपचार को मान्यता दी है। जर्मनी द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान German troops के वर्दी के लिए कंडाली से फाइबर तैयार किया था। तत्पश्चात कृत्रिम फाइबर के आने की वजह से कंडाली से निर्मित फाइबर को Under Valued किया गया। जबकि वर्ष 2015 में विश्व बाजार में फाइबर की खपत 95-6 Million टन थी जिसमें Oil based कृत्रिम फाइबर सर्वाधिक 62.1%, Cellulose and protein based (कंडाली सहित) 25.2 % , Wood based Cellulose फाइबर 6.4 % तथा अन्य प्राकृतिक फाइबर 1.5% का योगदान रहा है।

विश्व बाजार में इको फाइबर की मानव स्वास्थ्य, आराम तथा पर्यावरणीय दृष्टिकोण से लगातार मांग बढ़ रही है। विश्व बाजार में प्राकृतिक फाइबर का 2020, 74.65 Billion अमेरिकी डालर लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2014 में भारत तथा अमेरिका द्वारा इको-फाइबर में सबसे बड़ा बाजार रहा है जो कि 53 प्रतिशत योगदान देता है। जबकि भारत विश्व का इको-फाइबर का सबसे ज्यादा उत्पादक तथा उपभोक्ता रहा है, जो विश्व का 35 प्रतिशत योगदान देता है। वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका तथा भारत विश्वभर में 40 प्रतिशत योगदान रखते हैं। विश्वभर में इको-फाइबर निर्माता Lenzing AG Austria, Garsion Industries Limited India, Teijin Ltd जापान, US Fibers अमेरिका प्रमुख हैं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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